ग़ज़ल | कुसुम अंतरा
छिन गया घर मकान बाक़ी है
शख्सियत का निशान बाक़ी है
जश्न तू जीत का मना ले पर
मेरी अब भी उड़ान बाक़ी है
ज़िन्दगी ने कई दफ़ा मारा
मौत का इम्तिहान बाक़ी है
हैं मुसलसल अभी भी साँसें यह
आख़िरी इक अजान बाक़ी है
मेरी कागज़ की एक बस्ती का
अब भी इक़ आसमान बाक़ी है
कुसुम अंतरा